जबलपुर के देशल दान के पिता आर्थिक तंगी के कारण चाय का स्टॉल लगाते थे। उनके पास मौके सीमित थे, लेकिन उन्होंने उन सीमित मौकों में ही असीमित सफलता हासिल की।

देशल दान की सफलता की कहानी:

राजस्थान के जैसलमेर के छोटे से गांव सुमालियाई के देशल दान के जीवन में संघर्ष का चोली-दामन का साथ रहा। घर के वातावरण से लेकर आर्थिक हालातों तक कुछ भी पक्ष में नहीं था, लेकिन उनके धैर्य और मेहनत ने उन्हें उन्नति के मार्ग पर ले जाने में सहायक होते हुए उन्हें असीमित सफलता हासिल की।

देशल दान

सात भाई-बहनों में केवल दो ने की पढ़ायी –

देशल के घर में कुल सात भाई-बहन थे, लेकिन केवल दो ने शिक्षा का रास्ता चुना। देशल के पिताजी की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी, जिसके कारण उन्होंने चाय का स्टॉल लगाने का निर्णय लिया। इसके बावजूद, देशल ने संघर्षपूर्ण परिस्थितियों में भी अपने लक्ष्य को प्राप्त करने का संकल्प बनाया।

देशल की प्रेरणा थे उनके बड़े भाई –

देशल के बड़े भाई ने उन्हें सदैव प्रेरित किया। अपनी नौकरी से वापस आकर वह उन्हें अपने सफर के अनुभव साझा करते थे, जिससे देशल के मन में आईएएस की ओर संघर्ष का संज्ञान हुआ।

पहले अटेम्पट में पास की परीक्षा –

देशल ने मेहनत और लगन से अपना लक्ष्य हासिल किया। उन्होंने बिना किसी कोचिंग के यूपीएससी परीक्षा में 82वीं रैंक हासिल की। इस सफलता के पीछे उनके परिवार का साथ, प्रेरणा और संघर्ष ही था।

नहीं जानते पिता क्या होता है आईएएस –

देशल के पिताजी को उनके बेटे की सफलता पर गर्व और आनंद था, लेकिन उन्हें आईएएस के बारे में अधिक जानकारी नहीं थी। उन्हें यह समझने में समय लगा कि उनका बेटा कौन है और उसकी सफलता का महत्व क्या है।

देशल दान की इस सफलता की कहानी हमें यह सिखाती है कि अगर इरादा सच्चा हो और मेहनत की राह पर निरंतर बढ़ते रहें, तो कोई भी मुश्किल अवश्य हार जाती है। देशल ने अपनी मेहनत और उत्साह से न केवल अपने परिवार का नाम रोशन किया बल्कि समाज के निचले तबके के लिए भी एक प्रेरणास्त्रोत बने।

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