राजेंद्र भारूड. मां की पेट में ही थे, तभी पिता का निधन हो गया. ग़रीबी ऐसी थी कि पिता की एक फ़ोटो तक नहीं क्लिक हुई थी. मां देसी शराब बेचती थी. जब वह भूख से रोते तो उनकी दादी एक-दो चम्मच शराब मुंह में डाल देती थीं. शराब पीने वाले जो लोग आते, वह उसे स्नैक्स लाने के पैसे देते. बस  उसी से खिताबें ख़रीद कर पढ़ाई की और आज वह कलेक्टर हैं.

दैनिक भास्कर से बात करते हुए महाराष्ट्र के धुले जिले के रहने वाले राजेंद्र ने कहा, मेरे बड़े भाई और बहन हैं. मैं गर्भ में था तभी पिता का निधन हो गया. लोगों ने मां से अबॉर्शन कराने को कहा, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया. भीषण ग़रीबी में मेरा जन्म हुआ. मां जब देसी शराब बेचती थी तो मैं 2-3 साल का था. मैं रोता तो शराबियों को डिस्टर्ब होता. ऐसे में वो मेरे मुंह में शराब की एक-दो बूंद डाल देते और मैं चुप हो जाता.

वह आगे कहते हैं, बचपन में ऐसा कई बार हुआ की दूध की जगह एक दो चम्मच शराब मुझे पिला दी गई. ऐसे में मुझे आदत पड़ गई और कई बार भूखा होते हुए भी सो जाता था. सर्दी-खांसी में भी दवाई की जगह  शराब ही पिलाई जाती. 

10वीं-12वीं में आए अच्छे नंबर

वह कहते हैं, जब थोड़ा बड़ा हुआ तो शराब पीने आने वाले कोई न कोई काम कहते. स्नैक्स मंगाते. उसके बदले मुझे कुछ पैसे देते. इन्हीं पैसों को जोड़कर मैं किताबें ख़रीदता और पढ़ाई करता. 10वीं में 95% मार्क्स आए. 12वीं में 90%. मेडिकल प्रवेश परीक्षा के तहत मुंबई के सेठ जीएस मेडिकल कॉलेज में एडमिशन मिल गया.

वह कहते हैं, कॉलेज में मैं बेस्ट स्टूडेंट रहा. इस दौरान मुझे बचपन की वो बात याद आती, जिसमें एक व्यक्ति ने मां से कहा था कि लड़का शराब ही बेचेगा. लेकिन, मां ने कहा था कि इसे डॉक्टर-कलेक्टर बनाऊंगी. मैं उसी लक्ष्य को लेकर आगे बढ़ता गया और सिविल सर्विस की तैयारी करने लगा.

मां को विश्वास नहीं हो रहा था

वह कहते हैं, यूपीएससी में सिलेक्शन के बाद कलेक्टर बना. जब गांव के लोग, अफ़सर और नेता बधाई देने पहुंचे तो उन्हें बता चला कि उनका बेटा कलेक्टर बन गया है. वह खुशी से सिर्फ़ रोती रहीं. मैं आज जो कुछ भी हूं, मां के विश्वास की वजह से हूं.

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