रूबी पारीक ने जब सिर्फ 5 साल की थी, तब उनके पिता की कैंसर से मौत हो गई. यह अपार दुख की घड़ी में उनकी मां ने चार भाइयों और उनकी बेटी रूबी को पाल-पोस कर बड़ा किया. इस दर्दनाक समय में, रूबी के सिर पर पिता का साया उठ गया, जिसके चलते वो ज़्यादा पढ़ाई नहीं कर पाईं. उनके परिवार को कई बार सिर्फ़ सूखी रोटी और चटनी खाकर गुज़ारा करना पड़ता था, और सब्ज़ियों का अभाव भी था. इस कठिनाइयों भरे बचपन के बावजूद, रूबी ने उन्हें अवसर में बदलने का निर्णय लिया और ऑर्गैनिक खेती की ओर कदम बढ़ाया.

रूबी के पास बड़ी ही ज़मीन थी, लेकिन उनके पिता के इलाज में सारे पैसे चले गए, और उन्हें बड़ी ही ज़िंदगी की जायदाद बेचनी पड़ी. रूबी को यह जानकर हीरानी हुई कि खेतों में उपयोग किए जाने वाले केमिकल्स और खाद्य आदियों का सेवन करने से कैंसर का खतरा बढ़ सकता है। कैंसर के इस डर से ही रूबी के सिर से पिता का साया उठ गया था.

शादी के बाद, रूबी ने ऑर्गैनिक खेती की शुरुआत की

रूबी के परिवार में रूढ़िवादी सोच कायम थी, जिसके चलते उनकी मां कभी बाहर जाकर काम नहीं कर पाईं, जिससे उन्हें सुखी रोज़गार के पैसे मिल सकते थे, और वो सभी बच्चों को पाल-पोस सकतीं। जब रूबी 10 वर्षीय थी, तो उनकी पढ़ाई मुख्य बात नहीं बन पाई थी, क्योंकि परिवार के अर्थिक संकट के कारण उन्हें कई बार सिर्फ़ सूखी रोटी और चटनी खानी पड़ती थी और उनके खाने को सब्ज़ी नहीं मिलती थी।

रूबी की कठिनाइयों से भरपूर बचपन ने उन्हें बड़े होकर अवसर की ओर मोड़ दिया, और वो ऑर्गैनिक खेती की ओर कदम बढ़ाया।

एक इंटरव्यू के दौरान रूबी पारीक ने बताया कि उनके पास 150 बीघा ज़मीन थी। पिता के इलाज में बचत के सारे पैसे लग गए, बहुत सारी जायदाद बेचनी पड़ी, और वो यह देख पाईं कि फल-सब्ज़ियों में केमिकल्स और दवाइयां मिलाने से कैंसर का खतरा बढ़ सकता है।

यह जानकर रूबी ने आदर्शवादी दृष्टिकोण की ओर कदम बढ़ाया और उन्होंने ऑर्गैनिक खेती की शुरुआत की।

रूबी के साथ हुई प्रतिश्रुद्ध विशेषज्ञों की मदद

रूबी ने कृषि विज्ञान केन्द्र में एक इंटरव्यू के दौरान सुना कि ऑर्गैनिक खेती से मुनाफ़ा हो सकता है। उन्होंने तीन दिन की ट्रेनिंग कोर्स में हिस्सा लिया और उनके परिवार को इस नई खेती का फायदा मिलने लगा। रूबी ने बताया, ‘यूरिया, DAP और अन्य केमिकल फ़र्टीलाइज़र्स के स्थान पर हम गोबर और वर्मीकम्पोस्ट का इस्तेमाल करने लगे, जिससे इनपुट कॉस्ट्स 50 प्रतिशत घट गई। हमारा मुनाफ़ा भी डबल हो गया क्योंकि ऑर्गैनिक खेती की डिमांड ज़्यादा है और कीमत भी ज़्यादा मिलती है।’

रूबी का ये सफ़र आसान नहीं था, लोगों ने उनकी काबिलियत पर सवाल उठाया। वे बताती हैं, ‘जब मैंने अपने ससुरालवालों को बताया कि मैं ऑर्गैनिक खेती करना चाहती हूं, तो उन्होंने मेरा मज़ाक उड़ाया। मेरे ससुर ने सवाल किया कि मुझे ये करके क्या मिलेगा?’

गौरतलब है कि रूबी के पति ने उनका साथ दिया और एक बीघा ज़मीन पर ऑर्गैनिक खेती शुरू की। पहले 2-3 साल अच्छी फसल नहीं हुई, लेकिन रूबी ने अपने लक्ष्य को हासिल करने का निर्णय लिया था। चार साल की कठिन मेहनत के बाद, उन्हें ऑर्गैनिक खेती का फायदा मिलने लगा। आज, उनके परिवार के पूरे 26 एकड़ ज़मीन पर ऑर्गैनिक खेती ही होती है।

15,000 किसानों को ऑर्गैनिक खेती की शिक्षा

रूबी ने ऑर्गैनिक खेती के ज्ञान को सिर्फ़ अपने परिवार तक ही सीमित नहीं रखा, बल्कि वे अब तक 15,000 किसानों को फ़्री में ऑर्गैनिक खेती के गुर सिखाई हैं।

रूबी पारीक का संघर्ष और उनकी मेहनत के साथ, वे आज न केवल खुद के परिवार का भलाई कर रही हैं, बल्कि उन्होंने बड़ी संख्या में किसानों को भी ऑर्गैनिक खेती की ज़रूरी जानकारी प्रदान की है, जिससे कृषि क्षेत्र में सुधार हो सके।

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