कुलदीप द्विवेदी की कहानी उस दृढ़ संकल्प और साहस की मिसाल है, जो एक व्यक्ति को अपने सपनों की उच्चतम ऊंचाइयों तक पहुँचा सकता है। उत्तर प्रदेश के एक छोटे गांव शेखपुर से निकलकर, कुलदीप ने जीवन में गरीबी और कठिनाइयों का सामना किया। उनके पिता एक सिक्योरिटी गार्ड थे और पूरा परिवार एक छोटे से कमरे में रहता था।
कुलदीप के लिए, इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ना केवल एक सपना था। उन्होंने अपनी पूरी शिक्षा हिंदी माध्यम से प्राप्त की, जिसकी शुरुआत सरस्वती शिशु मंदिर से हुई और इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में हिंदी विषय में स्नातक और भूगोल में स्नातकोत्तर करके समाप्त हुई।
उनकी यात्रा ने एक नया मोड़ लिया जब उन्होंने यूपीएससी की तैयारी शुरू की। दिल्ली जाने के बावजूद, उनके पास किताबें खरीदने के लिए पर्याप्त धन नहीं था। इसलिए उन्होंने अपने साथियों से किताबें उधार लेकर अपनी तैयारी जारी रखी। कुलदीप ने अन्य सरकारी नौकरियों की भी परीक्षाएं दीं और 2013 में बीएसएफ में असिस्टेंट कमांडेंट के पद पर चयनित भी हुए। लेकिन उनका सपना आईएएस अधिकारी बनने का था, इसलिए उन्होंने यह नौकरी छोड़ दी।
अपने पहले प्रयास में असफल होने के बावजूद, कुलदीप ने हार नहीं मानी। उनके निरंतर प्रयास और अध्ययन का फल तब मिला जब 2015 में उन्होंने यूपीएससी में 242वीं रैंक हासिल की और आईआरएस अधिकारी बने। कुलदीप की सफलता का समाचार सुनकर उनके पिता को यकीन ही नहीं हुआ और उन्हें इसे समझने में समय लगा।
कुलदीप द्विवेदी की कहानी उस सिद्धांत को मजबूती से दर्शाती है कि सपने, कठिन परिश्रम और दृढ़ विश्वास से ही सच होते हैं। उनकी यात्रा उन सभी के लिए प्रेरणा है जो अपने सपनों को साकार करने के लिए अनवरत प्रयासरत हैं।