रुकमणि रियार की कहानी एक ऐसे यात्रा की है जो साबित करती है कि असफलताएं भी कभी-कभी जीत की ओर ले जाने वाली सीढ़ी बन सकती हैं। गुरदासपुर, पंजाब की रहने वाली रुकमणि ने अपने जीवन में कई बार असफलता का सामना किया। वह जब छठी कक्षा में फेल हो गईं, तब उनका आत्मविश्वास गहरी चोट खाया। लेकिन उन्होंने इस असफलता को अपनी ताकत बनाया और अपने सपने को साकार करने के लिए निरंतर संघर्ष किया।
रुकमणि ने अपनी स्कूली शिक्षा के बाद अमृतसर की गुरुनानक देव यूनिवर्सिटी में सोशल साइंस में ग्रेजुएशन की। वहाँ से ग्रेजुएट होने के बाद, उन्होंने मुंबई के टाटा इंस्टीट्यूट में पोस्ट ग्रेजुएशन की और गोल्ड मेडलिस्ट बनीं। इस दौरान, उन्होंने अन्नपूर्णा महिला मंडल और मैसूर की श्रद्धा महिला मंडल में इंटर्नशिप भी की। यहां तक कि योजना आयोग में भी उन्होंने अपनी सेवाएं दीं।
रुकमणि की जीवन यात्रा यह सिखाती है कि अगर हम अपने डर का सामना करें और उसे अपनी ताकत बना लें, तो हम कुछ भी हासिल कर सकते हैं। उन्होंने अपने सेल्फ स्टडी और अध्ययन के माध्यम से दिखाया कि सही दिशा में किया गया परिश्रम हमेशा फलित होता है।
वर्ष 2011 में, रुकमणि रियार ने यूपीएससी की परीक्षा दी और ऑल इंडिया रैंक-2 हासिल की। यह उनकी मेहनत, दृढ़ता, और आत्मविश्वास का फल था। रुकमणि रियार की कहानी हमें यह सिखाती है कि जीवन में कोई भी असफलता हमें हार नहीं मानने देनी चाहिए, बल्कि उसे एक सीख के रूप में लेकर आगे बढ़ना चाहिए। उनकी यह यात्रा हमें प्रेरित करती है कि जीवन की हर परिस्थिति में आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ें और सफलता अवश्य प्राप्त करें।