सिद्धार्थ बाबू, कलूर, कोच्चि के निवासी, ने साल 2016 में अपने दूसरे प्रयास में यूपीएससी सीएसई परीक्षा पास की। उनकी रैंक 15 आई और उन्होंने भारतीय विदेश सेवा (IFS) का चयन किया। सिद्धार्थ का रवैया इस परीक्षा को लेकर बहुत अलग है, जो हम आगे जाकर जानेंगे।

सफलता की कहानी: सिद्धार्थ का कहना है कि उन्होंने इस परीक्षा को हौव्वा नहीं बनाया। वे परीक्षा की तैयारी को और सफलता को साधारणता से देखते थे। उनका मानना था कि यूपीएससी को इतना बड़ा माहौल बना दिया गया है कि छात्र इसमें बहुत ज्यादा सीरियस हो जाते हैं, जो कि उनके लिए अत्यंत नकारात्मक हो सकता है। इसलिए, उन्होंने स्ट्रेस को कम किया और परीक्षा को एक नियमित और साधारण प्रक्रिया के रूप में देखा।

सिद्धार्थ बाबू

सही दिशा: सिद्धार्थ का कहना है कि सफलता पाने के लिए सही दिशा में बढ़ना जरूरी है, लेकिन इसके साथ ही स्ट्रेस को भी नियंत्रित रखना महत्वपूर्ण है। उन्होंने दूसरे कैंडिडेट्स की सलाह दी कि परीक्षा को हौव्वा न बनाएं और अपने दिनचर्या में खुशियों को शामिल करें।

सहज रहें: सिद्धार्थ का मानना है कि सहजता से काम करना सफलता की कुंजी है। उन्होंने यह सलाह दी है कि जो काम आपको खुशी देता है, उसे जरूर करें। उन्होंने अपने उदाहरण के रूप में यह देखा कि जितना वे पढ़ाई के बीच में विभिन्न मनोरंजन कार्यों में समय बिताते, उतनी ही उनकी प्रोडक्टिविटी बढ़ती थी।

सिद्धार्थ की सफलता की कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि सही दिशा में बढ़ने के लिए महत्वपूर्ण है, लेकिन साथ ही स्ट्रेस को नियंत्रित रखना भी। जीवन में खुशियों को खोजना और सहज रहना सफलता की राह में महत्वपूर्ण है।

इस आईएएस सफलता की कहानी से हमें सिद्धार्थ के अनुभवों से अगर्माही मिलती है, जो हमें यह बताती है कि सही दिशा में बढ़ने के लिए स्ट्रेस को कैसे कम किया जा सकता है। उनकी कहानी हमें यह सिखाती है कि सफलता की राह में खुशियों को खोजना और सहज रहना कितना महत्वपूर्ण है।

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