दिल्ली हाई कोर्ट ने बुधवार को यमुना नदी के तल पर बने एक अवैध मंदिर को तोड़ने की अनुमति दे दी है। अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा कि यमुना को अतिक्रमण से मुक्त देख भगवान शिव अधिक प्रसन्न होंगे।
हाइलाइट्स:
- दिल्ली हाई कोर्ट ने यमुना नदी के तल पर बने अवैध मंदिर को तोड़ने की अनुमति दी।
- कोर्ट ने कहा कि यमुना को अतिक्रमण से मुक्त देख भगवान शिव ज्यादा खुश होंगे।
- कोर्ट ने कहा कि भगवान शिव को हमारी सुरक्षा की आवश्यकता नहीं है।
न्यायमूर्ति धर्मेश शर्मा ने अपने आदेश में उल्लेख किया कि याचिकाकर्ता के वकील की यह दलील कि भगवान शिव को भी मामले में शामिल किया जाना चाहिए, अधूरी और भ्रामक है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि भगवान शिव को हमारी सुरक्षा की आवश्यकता नहीं है; बल्कि, यह हम हैं जिन्हें उनकी सुरक्षा और आशीर्वाद की आवश्यकता है।
अदालत की टिप्पणी:
कोर्ट ने प्राचीन शिव मंदिर को तोड़ने के आदेश को रद्द करने से इनकार करते हुए कहा कि यमुना नदी के तल और बाढ़ के मैदानों को सभी अतिक्रमण और अनधिकृत निर्माण से मुक्त करना अधिक महत्वपूर्ण है। न्यायालय ने कहा, “अगर यमुना नदी की तलहटी और बाढ़ के मैदानी इलाके सभी तरह के अतिक्रमण और अनधिकृत निर्माणों से मुक्त हो जाते हैं, तो भगवान शिव अधिक खुश होंगे।”
याचिकाकर्ता का तर्क:
याचिकाकर्ता का दावा था कि यह मंदिर आध्यात्मिक गतिविधियों का केंद्र है, जहां नियमित रूप से 300 से 400 भक्त आते हैं। याचिका में यह भी कहा गया कि मंदिर की संपत्ति की पारदर्शिता, जवाबदेही और जिम्मेदार प्रबंधन को बनाए रखने के लिए 2018 में एक सोसायटी का पंजीकरण किया गया था।
कोर्ट का फैसला:
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि विवादित जमीन व्यापक सार्वजनिक हित के लिए है और याचिकाकर्ता सोसायटी इस पर कब्जा जारी रखने और इस्तेमाल करने के लिए किसी निहित अधिकार का दावा नहीं कर सकती है। कोर्ट ने यह भी कहा कि जमीन शहरी विकास मंत्रालय द्वारा अनुमोदित जोन-‘ओ’ के ज़ोनल डेवेलप्मेंट प्लान के अंतर्गत आती है।
दिल्ली हाई कोर्ट का यह निर्णय यमुना नदी के संरक्षण और अनधिकृत निर्माणों से मुक्त कराने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह निर्णय न केवल यमुना नदी के पर्यावरण को संरक्षित करने के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भी संकेत देता है कि धार्मिक स्थलों का निर्माण नियमों और कानूनों के अनुसार होना चाहिए।