यह कहानी हर उस इंसान के लिए प्रेरणा है, जो लगातार कोशिशों के बाद भी सफल नहीं हो पा रहे, जो अंदर ही अंदर हार रहे हैं. कहानी है कानपुर के तुषार जायसवाल की. तुषार ने मेहनत की असफल हुए. फिर लड़े, फिर असफल हुए. इस तरह एक दो नहीं, बल्कि पूरे 17 साल बीत गये.

इनके संघर्ष के दौरान कई बच्चों ने जन्म लिया होगा और दाढ़ी मूंछों के साथ जवानी में कदम भी रख दिया होगा. मगर तुषार वहीं के वहीं थे. सोचिए कैसा लगता होगा परिचितों द्वारा ये पूछे जाने पर कि क्या कर रहे हो आज कल? हर बार एक ही उत्तर “तैयारी कर रहा हूं.” 

इस सवाल-जवाब के बीच बहुत लोग टूट गए. अच्छे-अच्छे हिम्मती और हुनरमंद लोगों ने हार मान ली, लेकिन तुषार एक अलग ही मिट्टी के बने हुए थे. उन्होंने हार नहीं मानी और सिविल जज बनकर उन सबके लिए प्रेरणा बने, जो कुछ बनने के लिए अपनी असफलताओं से लड़ते हुए आगे बढ़ रहे हैं.

यूपी के कानपुर में एक जगह है. लाल बंगला. तुषार जायसवाल यही के रहने वाले हैं. 1997 में उन्होंने जयपुरिया स्कूल से 10वीं और 1999 में 12वीं पास की. इसके बाद अपने शहर के ही पीपीएन कॉलेज से अपनी ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की और सिविल सर्विसेज की तैयारी में जुट गए.

अपनी तैयारी के दौरान तुषार ने कई परीक्षाएं दी. कई बार वो प्री क्वालीफाई करके मेंस और फिर इंटरव्यू का हिस्सा भी बने, मगर अंतिम पड़ाव वह कई बार पार नहीं कर पाए. 

यह सिलसिला कई सालों तक चला. इस दौरान उन्हें उनके आसपास के लोगों ने किसी दूसरे क्षेत्र में ट्राई करने को कहा. मगर तुषार अपने रास्ते से नहीं हटे. यहां तक कि उन्होंने अपनी शादी तक को टाल दिया था. उनके इस फैसले में उनके परिवार ने पूरा साथ दिया.

अंतत: उनकी मेहनत रंग लाई. 17 साल की कड़ी मेहनत के बाद तुषार उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (यूपीपीएससी) की पीसीएस-जे 2018 में चयनित हुए और एक सिविल जज बने. एक मध्यम वर्गीय परिवार से आने वाले तुषार की कहानी बताती है कि मेहनत करने वालों की कभी हार नहीं होती.

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